फैमिली एंटरटेनर धमाका: थलाइवन थलाइवी पर हमारी बात thalaivan thalaivi
परिचय:
कभी-कभी फिल्में सिर्फ देखने के लिए नहीं होतीं, वो महसूस करने के लिए होती हैं। विजय सेतुपति और नित्या मेनन की हालिया तमिल फिल्म ‘थलाइवन थलाइवी’ ऐसी ही एक भावनात्मक यात्रा है, जिसमें प्रेम है, तकरार है, हँसी है और अंत में एक ऐसा संदेश, जो सीधे दिल को छू जाए। इस फिल्म ने मेरे मन को इतनी शांति दी कि सोचा... क्यों न अपनी बात आप सबसे भी साझा की जाए।
कहानी – रिश्तों की उलझन और मिठास:
कहानी शुरू होती है एक साधारण गाँव से, जहाँ एक परोट्टा मास्टर (विजय सेतुपति) और उसकी पत्नी पेरारसी (नित्या मेनन) के बीच का रिश्ता धीरे-धीरे बदलता है। दोनों की शादी हो चुकी है, पर जीवन वैसा सरल नहीं रहा जैसा फिल्मों में दिखता है। यहाँ ना कोई खलनायक है, ना ही कोई बड़ी साज़िश – बस दो इंसान हैं, दो अहं हैं, और एक ऐसा समाज है जो रिश्तों में टांग अड़ाने से बाज नहीं आता।
जो बात मुझे बहुत गहराई से छू गई, वो थी इन दोनों किरदारों के बीच की खामोश दूरी। वो तकरारें, वो चुप्पियाँ, और फिर उनके बीच उभरता प्यार — ये सब इतना असली लगता है कि मानो अपने आस-पास की किसी जोड़ी को देख रहे हों।
निर्देशन – पांदिराज की खास छाप:
पांदिराज को पारिवारिक विषयों पर काम करने में महारत हासिल है। इस फिल्म में भी उन्होंने दिखा दिया कि कैसे सामान्य किरदारों में असामान्य गहराई लाई जा सकती है। डायरेक्शन एकदम संतुलित है – न कहीं ज़्यादा खिंचाव, न कहीं हड़बड़ी।
व्यक्तिगत अनुभव – एक भावुक सफर:
मैं जब ये फिल्म देख रहा था, तो ऐसा लगा जैसे ये कहानी कहीं न कहीं मेरी ज़िंदगी से जुड़ गई हो। हम सबने कभी न कभी रिश्तों में टकराव देखा है, मनमुटाव झेले हैं, और फिर छोटी-छोटी बातों से प्यार को वापस पाया है। थलाइवन थलाइवी हमें यही सिखाती है — कि प्यार हमेशा ज़िंदा रहता है, बस हमें उसे फिर से महसूस करने की ज़रूरत होती है।
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