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कौन हैं परवती तिर्की? आदिवासी बेटी जिसने ‘फिर उगना’ से जीता साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2025

 झारखंड की धरती हमेशा से अपनी संस्कृति, परंपरा और आदिवासी जीवन की कहानियों के लिए जानी जाती है। इसी मिट्टी से निकली हैं परवती तिर्की, जिन्होंने अपने पहले ही काव्य संग्रह ‘फिर उगना’ से हिंदी साहित्य जगत में ऐसी पहचान बनाई कि उन्हें साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2025 से नवाज़ा गया।


SOURCE:NEWS AROMA

परवती तिर्की का सफ़र

परवती तिर्की का जन्म 16 जनवरी 1994 को झारखंड के गुमला ज़िले में हुआ। गाँव की पगडंडियों, खेत‑खलिहानों और लोकगीतों के बीच पली‑बढ़ी परवती ने बचपन से ही प्रकृति और आदिवासी संस्कृति को गहराई से महसूस किया।

SOURCE:NEWS4NATION

  • उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, गुमला से पाई।

  • फिर बनारस की पवित्र नगरी में जाकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से हिंदी साहित्य में स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी पूरी की।

  • उनके शोध का विषय था “कुड़ुख आदिवासी गीत: जीवन राग और जीवन संघर्ष”, जो उनकी जड़ों और पहचान से गहराई से जुड़ा हुआ है।

आज वह रांची विश्वविद्यालय से संबद्ध राम लखन सिंह यादव कॉलेज में हिंदी विभाग की सहायक प्राध्यापक हैं।

सम्मान और उपलब्धियाँ

  • साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2025 (हिंदी)

  • प्रलेक नवलेखन सम्मान 2023

ये पुरस्कार सिर्फ परवती की प्रतिभा का सम्मान नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की आवाज़ को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलने का प्रतीक हैं।

 ‘फिर उगना’ – संघर्ष और संवेदना की आवाज़

2023 में प्रकाशित परवती का पहला काव्य संग्रह ‘फिर उगना’ सिर्फ कविताओं का संकलन नहीं है, बल्कि यह आदिवासी जीवन, प्रकृति और इंसानी संघर्षों का जीवंत दस्तावेज है।
उनकी कविताओं में –

  • जंगल की सरसराहट,

  • पहाड़ों की खामोशी,

  • लोकगीतों की मधुरता,

  • और आदिवासी समाज की जिजीविषा साफ झलकती है।

कहा जाता है कि जब आप उनकी कविताएँ पढ़ते हैं तो लगता है मानो पेड़, नदियाँ और पक्षी भी आपसे संवाद कर रहे हों।

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